संस्कार लिखने – पढ़ने से नहीं बल्कि जीने से आता है – पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज

बरेली। केवल लिखने पढ़ने से संस्कार नहीं आता है, बल्कि संस्कारमय जीवन जीने से आता है। और जो संस्कारमय जीवन जीता है उसका पुण्य वर्धन होता है और उसका सौभाग्य भी बढ़ता है। यही हमारी सनातन संस्कृति है।

उक्त बातें बरेली के मॉडल टाउन स्थित श्री हरि मंदिर के कथा मंडप में गंगा समग्र के आवाहन और श्री अरुण गुप्ता जी के पावन संकल्प से आयोजित पंच दिवसीय श्रीराम कथा का गायन करते हुए चौथे कथा सत्र में पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कहीं।

सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए विश्व प्रसिद्ध प्रेममूर्ति पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री राम कथा गायन के क्रम में श्री सीताराम विवाह और आगे के प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि संस्कार के शिक्षा देने का प्रसंग कई बार मानस जी में आया है और एक प्रसंग यह है कि चक्रवर्ती सम्राट दशरथ जी अपने गुरु जी के यहां जाकर अपने दुख सुख सुनाते हैं। वह चाहते तो संदेश भेज कर अपने गुरु को महल में ही बुला सकते थे। यह प्रसंग हमें यह शिक्षा देता है कि श्रेष्ठ के द्वार पर चलकर जाना चाहिए श्रेष्ठ को अपने यहां आने के लिए विवश नहीं करना चाहिए। श्रद्धा भाव से अगर हम थोड़ा सा प्रयास करें तो हम बिना किसी खर्च के हर रोज अपना पुण्य और सौभाग्य बढ़ा सकते हैं। दूसरा प्रसंग श्री सीताराम विवाह से जुड़ा है। इस विवाह में दोनों ही कालों की परंपरा का पालन किया गया। कुल परंपरा का पालन नहीं करने से वैवाहिक जीवन में बहुत सारी बधाएं उत्पन्न होती हैं।

पूज्य श्री ने कहा कि सनातन धर्म और परंपरा में गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने वाले अपने जीवन की परमार्थ यात्रा भी शुरूआत करते हैं। गृहस्थ आश्रम को सभी चार आश्रम में श्रेष्ठतम बताया गया है। सनातन परंपरा में विवाह संस्कार को समाज का मेरुदंड बताया गया है।

पूज्य महाराज श्री ने कहा कि निरंतर भजन में रहने वाले की कभी मृत्यु नहीं होती है। इसलिए सामान्य व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने जीवन के सभी क्रियाओं में संयुक्त रहते हुए भजन में भी प्रवृत्त हों।

महाराज जी ने कहा – सत्कर्म सोचने से नहीं होता है सत्कर्म के लिए सोचने वाले सोचते रह जाते हैं लेकिन करने वाला तुरंत उस कार्य को पूरा कर लेता है।

पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य अपने अर्थ और संपत्ति का उत्तराधिकारी तो बना जाता है लेकिन अपने परमार्थ पथ का उत्तराधिकारी कोई-कोई ही बना पाता है।

प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि अपने जीवन काल में ही हमें अपने परमार्थ पथ का उत्तराधिकारी तैयार करने की आवश्यकता है, तभी तो कई पीढ़ियों तक परमार्थ चलता रहता है।

रविवार के कथा सत्र का प्रारंभ झारखंड के महामहिम राज्यपाल संतोष गंगवार जी के द्वारा पंचदीप जलाकर किया गया। राज्यपाल जी का सम्मान महाराज श्री के हाथों स्मृति चिन्ह (मां गंगा का चित्र) एवं स्मारिका गंगा समग्र पुस्तिका देकर किया गया।

व्यासपीठ का सपत्नीक पूजन यजमान श्री अरुण गुप्ता जी ने किया और रामकथा के लोकप्रिय व्यास उमाशंकर जी व्यास, राजेश कुमार जी राष्ट्रीय आयाम प्रमुख सहायक नदी गंगा समग्र , डॉ रवि शरण जी, अमित शर्मा जी, डॉक्टर विमल भारद्वाज जी और गंगा समग्र के स्थानीय पदाधिकारियों के साथ भगवान की आरती की।

महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। हजारों की संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए।

मां गंगा एवं उनकी सहायक नदी राम गंगा नदी के स्वच्छ निर्मल स्वरूप एवं पुनरुद्धार के लिए जन जागरण अभियान के लिए रामगंगा श्री राम कथा में विधान परिषद सदस्य कुं0 महाराज सिंह राजेश कुमार जी राष्ट्रीय सहायक नदी आयाम प्रमुख गंगा समग्र प्रांत संयोजक रविशंकर सिंह भाग संयोजक अमित शर्मा कोषाध्यक्ष व अन्य गणमान्य लोगों उपस्थित रहे।

 

The LaalTen
Author: The LaalTen

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