बरेली। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने राष्ट्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष द्वारा मदरसों के खिलाफ की गई कार्यवाही पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इन लोगों को चाहिए कि पहले मदरसों का इतिहास पढ़ें फिर मदरसों के बारे में बात करें। मौलाना ने कहा कि राष्ट्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष हमेशा किसी न किसी मदरसे के विरुद्ध जांच पड़ताल करते रहते हैं य सरकार को पत्र लिखते हैं, वो कोई न कोई बहाना बनाकर मदरसों को कढघडे में खड करते रहते हैं। पहले जम्मू-कश्मीर के मदरसों को लेकर के आपत्ति की , फिर आसाम के 1400 मदरसों को बंद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और अब उत्तरप्रदेश के मदरसों को लेकर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
मौलाना ने कहा कि आयोग के अध्यक्ष को उन मदरसों का इतिहास पड़ने की जरूरत है, ये वही मदरसे है जिन्होंने जंगे आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बिरादराने वतन के साथ मिलकर देश को आजाद कराया। वर्ष 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ जामा मस्जिद दिल्ली से फतवा देने वाले मौलाना फज्ले हक खैराबादी और मौलाना रजा अली खां बरेलवी मदरसे के ही छात्र थे।
मौलाना ने कहा कि जो लोग मदरसों पर आपत्ति कर रहे हैं वो हकिकत से अलग थलग है, लाखों मदरसों में अगर कोई एक मदरसा गलत कार्य करता मिलता है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही होनी चाहिए, लेकिन सभी मदरसों को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए, देखा जा रहा है की एक की ग़लती पर 99 मदरसों को कढघडे में खड़ा कर दिया जाता है।
मौलाना ने कहा कि चंद दिनों पहले यती नर्सिंघा नंनद ने पैग़म्बरे इस्लाम की शान में गुस्ताखी की और अब मदरसों को बंद करने को लेकर आवाजें उठ रही है। ऐसी सूरत-ए-हाल में मुसलमान सपा मुखिया अखिलेश यादव से सवाल पूछ रहे हैं कि वो किस के साथ खड़े हैं। यती नर्सिंघा नंनद के साथ य मुसलमानों के साथ? विधानसभा और लोकसभा में झोली भर के मुसलमानो ने समाज वादी पार्टी को वोट दिया,मगर इस वक्त मुसलमानों को जरूरत है कि अखिलेश यादव हमारी आवाज ऐसम्बली और पारलेमैंट में उठाए, मगर वो खामोश है।हम उनसे इस खामोशी का राज पूछना चाहतें हैं, की वो आखिर किस वजह से खामोश है? उनको पैग़म्बरे इस्लाम और मदरसे को मुद्दो पर जवाब देना ही होगा।
