घूमने का शौक एक ऐसा शौक जो एक बार लग जाए तो फिर घर पर पैर नही टिकते।
घूमने के शौकीन लोगों की सबसे पहली पसंद होती है । पहाड़ , नदी या समंदर किनारे घूमने जाए ।
अब गर्मी या सर्दी में तो इन जगहों पर आराम से जाया जा सकता है लेकिन बरसात में इन सब जगहों पर जाने में खतरा है और उतना मज़ा भी नही आता , तो अब सवाल आता है की फिर कहा़ घूमने जाए , तो इसका जवाब है राजस्थान जो बरसात के दिनों बहुत ही सुंदर लगता है ।
वैसे तो राजस्थान घूमने का सबसे अच्छा वक्त सर्दी का होता है लेकिन राजस्थान में कुछ जगह ऐसी है जो सर्दी के साथ – साथ बरसात में भी काफी सुंदर लगती है ।
उन्ही जगहों में से एक जगह है अलवर जिसको राजस्थान का सिंह द्वार भी बोलते है ।
तो चलिए आज आपको बताते है की अलवर में घूमने के लिए कौन कौन सी जगह है और अलवर कैसे पहुंचा जा सकता है ।
तो सबसे पहले आता है …
बाला_किला
अलवर का किला, जिसे “कुंवारा किला” के नाम से जाना जाता है, अलवर में सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों में से एक है और रेलवे स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर दूर है।
“बाला” किला, या युवा किला, वास्तव में 1550 ईस्वी में हसन खान मेवावती द्वारा बनाया गया था और यह शहर की सबसे पुरानी इमारत है।
किले के अंदर बहुत सुंदर राम जी का मंदिर है बाला किला एक छोटा सा किला है पर यहां से आप अलवर शहर का पूरा व्यू देख सकते है ।
बारिश के समय ये जगह किसी स्वर्ग सी लगती है जब बादलों के बीच ये किला छुप जाता है इसलिए अलवर का राजस्थान का स्विट्जरलैंड भी बोलते है ।
जयपुर के बाद यहां एशिया की दूसरी सबसे बड़ी तोप भी रखी है ।
समय: सुबह 10 बजे – शाम 5 बजे प्रवेश शुल्क: नि: शुल्क
सिलीसेर_झील_और_महल
अलवर में शीर्ष आकर्षणों में से एक सिलिसर महल है, जो इसी नाम की प्रसिद्ध झील के करीब स्थित है।
यह पूर्व में महाराजा विनय सिंह द्वारा 1845 में अपनी प्यारी दुल्हन शीला के लिए बनाया गया एक शाही शिकार लॉज था। बाद में, यह एक पूर्ण महल में विकसित हुआ।
झील एक सुंदर पिकनिक क्षेत्र और नौकायन का आनंद लिया जा सकता है ।
महल को अब एक हेरिटेज होटल में बदल दिया है जो आरटीडीसी के अंदर आता है,
समय: सुबह 8 से शाम 7 बजे तक
शुल्क रु 100 ।
जिसमे आप इस शुल्क राशि से होटल के अंदर चाय कॉफी या कोल्ड ड्रिंक कुछ एक ले सकते है ।
सरिस्का_वन्यजीव_अभयारण्य
यह अभयारण्य, जिसे सरिस्का टाइगर रिजर्व के रूप में भी जाना जाता है, अलवर शहर से 36 किलोमीटर की दूरी पर है,
अभयारण्य लगभग 850 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है और इसमें घास के मैदान, शुष्क पर्णपाती वन और खड़ी चट्टानें शामिल हैं। रिजर्व के भीतर कंकवारी किला है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है। पर्यटक को यहां खुली जीप में बैठा के अभ्यारण के अंदर ले जाते है जहां उनकी किस्मत जोर मार गई तो शेर दिख जाता है वरना जंगली सुअर और नील गाय हर तरफ दिख जायेंगे।
समय: सुबह 6 बजे – रात 9:30 बजे
प्रवेश शुल्क: खुली लूट
विजय_मंदिर_पैलेस
गूगल पर आपको सुझाव आयेगा की आप विजय मंदिर पैलेस घूम सकते है पर जानकारी के लिए बता दूं इसको आप अंदर से नही देख सकते सिर्फ बाहर से वो भी दूर से ही देख सकते है
इसके अंदर जाने के लिए आपको राजपरिवार से इज्जात लेनी होगी । इसलिए मैं इस जगह को घूमने का ज्यादा सुझाव नही देता ।
लेकिन जानकारी के लिए बता देता हूं की ये पैलेस अभी भी राज परिवार के अधीन आता है इस महल का निर्माण 1918 में महाराजा जय सिंह ने एक जहाज के आकार में करवाया था।
इस विशाल महल में 105 कमरे हैं, और इसके पास ही विजय सागर झील है जो दो तरफ से इस इमारत को घेरे हुए है
प्रवेश शुल्क निशुल्क , आम जनता के लिए वर्जित ।
भानगढ़_किला
यदि आप कुछ डरावना खोज रहे हैं और वहां रहते हुए एक नए रोमांच का प्रयास करना चाहते हैं।
यह किला, जो सरिस्का टाइगर रिजर्व के किनारे पर स्थित है और सबसे प्रेतवाधित स्थानों में से एक माना जाता है, भयानक होने की प्रतिष्ठा रखता है। यह किला भूतिया है, जैसा कि अतीत में कुछ अपसामान्य घटनाओं और प्राकृतिक घटनाओं से पता चलता है। अलवर में उसे देखने के लिए है।
कुछ भ्रांति है की शाम को यहां किसी को आने नहीं देते तो बता दे । ये स्थान एएसआई के अंदर आता है और इस तरह के संरक्षित स्थानों पर सूर्यास्त के बाद प्रवेश बंद हो जाता है इसलिए इसका भूतिया होने से कोई संबंध नहीं है
दूसरा हमारे एक जानकर यहां एक रात चुप चाप से छुप के रुक गए थे और फिर उन्होंने बताया की क्यों यहां रात में डर लगता है पर भूत जैसा यहा कुछ भी नही है ।
समय: सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक प्रवेश शुल्क: 45 रुपये
अलवर_पैलेस_संग्रहालय
यह एक महल है जिसे अब सरकारी संग्रहालय के रूप में भी जाना जाता है, इस में रखे समान शाही इतिहास और विरासत के बारे में बताते हैं।
इसके संग्रह की संपूर्णता, जिसमें मूर्तियां, वस्तुएं, पेंटिंग और पांडुलिपियां शामिल हैं, शाही परिवारों के समान और हथियार आदि रखे हुआ है
समय: सुबह 10 से शाम 5 बजे तक प्रवेश शुल्क : 20 रुपये
नीलकंठ_महादेव_मंदिर
सरिस्का टाइगर रिजर्व के अंदर स्थित, यह मंदिर चट्टानी रास्ते के रूप में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है, जो मंदिर की ओर जाता है, जो इसे अलवर के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में से एक बनाता है।
ये स्थान 10 वी शताब्दी का है जहां शिवजी का बहुत प्राचीन मंदिर है, बताया जाता है की यहां एक हजार शिवलिंग थे जिसको मुस्लिम आक्रमणकारी ने तोड़ दिया पर वो मुख्य शिवलिंग जिसको नीलकंड बोलते है उसको वो नही तोड़ पाया ।
प्राचीन पत्थरों से निर्मित, आप वास्तुकला पर अचंभित कर सकते हैं या बस इस मंदिर के अच्छे दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।
इसी स्थान पर आपको जैन धर्म के अवशेष भी है और एक भगवान महावीर जी की काफी बड़ी खंडित मूर्ति भी है
लेकिन एक मुस्लिम आक्रमणकारी ने ये हिंदू और जैन मंदिर सब को तोड़ दिया ।
सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक
प्रवेश शुल्क: सिर्फ पार्किंग चार्जेस ।
मूसी_महारानी_की_छत्री
शहर के मुख्य महल के बाहर है जिसके सागर है जो की सीढ़ी नुमा पानी का काफी बड़ा तालाब है
अलवर शहर के पूर्व राजा, महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी, रानी मूसी के सम्मान में बनाया गया था, जो पति की चिता पर सती हुई थी।
ये एक काफी सुंदर छतरी है जिसके अंदर चारों तरफ संगमरमर पर गंगोर की सवारी , कृष्ण लीला , विष्णु का सभी अवतार और अलवर के राजा की शाही सवारी की नक्काशी की हुई है ।
समय : पूरे दिन
शुल्क कुछ भी नही
फतेह_जंग_गुंबद
अगर आप ट्रेन से आ रहे है तो स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 2 की तरफ से बाहर निकलते ही आपको
ये गुम्बदनुमा इमारत दिख जायेगी ।
शानदार पांच मंजिला मकबरा है, जिसकी 18 वीं शताब्दी से एक उल्लेखनीय विरासत है।
यह मकबरा मुगल और राजस्थानी शाही स्थापत्य शैली को जोड़ती है जिसके लिए अलवर प्रसिद्ध है। विशाल गुंबद, लंबी मीनारें और बलुआ पत्थर से बनी ये इमारत रात में रंग बिरंगी रोशनी में काफी सुंदर लगती है
वैसे मैं निजी तौर पर इसको अलग से घूमने का सुझाव नही दूंगा क्योंकि अब इसकी हालत अंदर से काफी खराब हो गई है ।
समय: सुबह 6 बजे -6 बजे प्रवेश शुल्क: निशुल्क
पांडु_पोल
पांडुपोल में हनुमान जी की लेती हुई मूर्ति है अलवर के प्रमुख मंदिरों में से एक है। जहां साल में एक बार मेला भरता है
पौराणिक कहानियां के अनुसार पांडव अपने वन वास के दौरान इस स्थान पर आए थे और जब द्रोपदी को प्यास लगी तो भीम ने अपनी गदा के प्रहार से पहाड़ के से पानी निकाल दिया । जिस कारण अभी भी वहा से झरना बहता है ।
यह मंदिर सरिस्का के जंगलों के अंदर स्थित है। एक पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर में पांडवों ने अपना गुप्त समय बिताया था।
अलवर शहर के अन्य मंदिरों से बिलकुल अलग यहां पर हनुमान की मूर्ति एक वैराग्य की स्थिति में है
दूसरी कहानी के अनुसार जब भीम को अपनी ताकत का घमंड हो गया तब हनुमान जी यही पर विश्राम की स्थिति में लेट गए थे और उनकी पूंछ को भीम उठा नही पाया था ।
ये मंदिर सरिस्का वन अभ्यारण के अंदर आता है इसलिए अब इस मंदिर में सिर्फ आप मंगलवार और शनिवार को ही जा सकते है
अलवर का दूसरा नाम मत्स्य नगर भी है जिसका जिक्र महाभारत में मिलता है
यही पर विराटनगर है उसका भी जिक्र महाभारत के विराटपर्व में मिलता है जहा पांचों पांडव में अपना रूप बदल के अपने वनवास के दौरान छुप के रहे थे ।
इन सब जगहों के अलावा भी अलवर में काफी कुछ घूमने और देखने को है जैसे महाराज भरतरी की की समाधि जो उज्जैन के राजा थे और राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई , नलेदेश्वर महादेव मंदिर जिसके पास काफी सुंदर बरसाती झरना है और यहां स्वंभू शिवलिंग है जिसके बारे में मान्यता है की राजा नल ने इसकी स्थापना की थी।
ताल वृक्ष जहा गरम और ठंडे पानी का कुंड है और महाभारत में इसका जिक्र है
ये वही जगह है जहां पांडव में पेड़ों पर अपने अस्त्र शस्त्र छुपाए थे आदि आदि ।
लेकिन राजस्थान पर्यटन विभाग की उदासीनता और वन विभाग के नियमों के कारण ये सब जगह ठीक तरीके से विकसित नही हो पाई है ।
ऊपर बताए सभी जगहों के वीडियो आपको यूट्यूब चैनल #travel4search पर भी मिल जायेगे । जिनको आप देख सकते है
अलवर कैसे जाएं
आप हवाई मार्ग से अलवर पहुँच सकते हैं: अलवर का निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली का इंद्रा गांधी हवाई अड्डा है जिसकी अलवर से दूरी 140 km है
इसके अलावा आप सांगानेर हवाई अड्डा, जयपुर है, जो अलवर शहर से लगभग 162 किमी दूर स्थित है।
ट्रेन द्वारा: अलवर जंक्शन रेलवे स्टेशन राजस्थान के अलवर जिले का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है। जो दिल्ली जयपुर रेल मार्ग की बीच में आता है इसलिए दिल्ली और जयपुर से आने वाली सभी प्रमुख ट्रेन अलवर में रुकती है ।
अगर बात करें बरैली की तो बरैली से अलवर के लिए 2 ट्रेन चलती है एक वाराणसी साबरमती एक्सप्रेस ( 19408 ) दूसरी बरैली भुज एक्सप्रेस ( 14321 )
जिसके द्वारा आप बड़े आराम से बरेली से अलवर आ जा सकते है ।
अलवर की दिल्ली से 150km की दूरी है और जयपुर से 160 km।
सुझाव : जब बारिश हो रही हो तब अलवर स्वर्ग सा सुंदर लगता है गर्मी में ये नर्क सा लगता है और सर्दी में अलवर सुहाना लगता है । अब ये आप पर है की आप अलवर कब आना चाहते है
अलवर घूमने के लिए 2 – 3 दिन पर्याप्त है